गुरु और शिष्य
यह कहानी गुरुकुल के जमाने की है जहां पर बच्चे अपने गुरुओं के आश्रम में रहकर पढ़ाई किया करते थे | उस समय शिष्य अपने गुरुओं के जमीन पर खेती भी किया करते थे | गाय भी चराया करते थे | जंगलों से फल फूल लकड़िया यह सब भी लाया करते थे |
इसी तरह से हर दिन शिष्य अपने गुरुओके आश्रम मैं काम किया करते थे | एक बार सावन के महीने में 3 दिन लगातार बहुत जोरों का बारिश होने लगा | आश्रम के चारों तरफ पानी से भर गया | गुरु अपने शिष्यों को उनकी जमीन देखने के लिए भेजें | कुदाल पकड़कर शिष्य इधर उधर जाने लगे |
उन शिष्यों में से एक शिष्य था नाम था आरुणि | उसका उम्र बस पंद्रह साल ही था | उसने जमीन पर देखा कि एक जगह बांध टूट जाने के कारण पानी एक जमीन से और जमीनों पर जा रही है | यह देखकर वह मिट्टी लेकर उस जगह के पास डालने लगा और पानी को रोकने की कोशिश की परंतु रोक नहीं पाया | इसलिए आरुणि वहीं पर हनी को रोकने के लिए सो गया |
रात होने के बाद सारे शिष्य अपने आश्रम लौट आए शिवाय आरुणि की | इसी कारण गुरु चिंतित हो गए | कुछ समय के पश्चात गुरु और शिष्यों के साथ मारवाड़ी को ढूंढने निकल गए | गुरु बड़े जोर के आवास आर्मी आरुणि बोल कर पुकारने लगे | आरुणि यह सुनकर आज्ञा गुरुदेव सोते हुए बोला |
आरुणि के पास गुरुदेव पहुंचने के बाद जब गुरुदेव ने आरुणि को सोते हुए पानी को रोकता देखा वह बहुत खुश हुए और प्रसन्न हुए | उसे वहां से उठाकर अपने गले में लगाए | उसके बाद सारे बच्चे मिलकर उस जगह में मिट्टी डाल के पानी को बंद कर दिया | सारे शिष्य मिलकर आरुणि की प्रशंसा किए |
इस कहानी से हम यहां सीखते हैं कि हमेशा गुरु की बोले हुए रास्तों पर ही चलना चाहिए |
|| धन्यवाद ||
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