उपस्थित बुद्धि
एक दिन की बात है एक व्यापारी पैसे के बारे में अपने काम से बाजार जा रहा था | रास्ता में एक जंगल गिरा | वर्ण ने देखा कि उसकी ओर से एक भालू आ रहा है | मार्कर एक पेड़ के पीछे छुप गया | भालू पीछे वाले दो पैरों पर खड़े हो जाएं कि मार्कर को काटने के लिए दौड़ने लगा मार्कर डर के मारे भालू का आगे के दो पैरों को पकड़ लिया | भालू और मार्कर के बीच में एक पेड़ रह गया | भालू काटने के लिए मार्कर को काटने के समय पर मार्कर पेड़ के चारों ओर घूमने लगा जिससे उस भालू को काट नहीं पाया | मार्कर के कमर में रखा हुआ सारा पैसा जमीन पर बंट गया |
कुछ देर के बाद उसी तरह से और एक आदमी रहा था | पेड़ के पास जमीन पर बिखरे हुए पैसों को देखकर उसने मार्कर को पूछा, "भाई यह सब पैसे कहां से आए हैं?" चरित्र बोला, "इस अब पैसे मुझे भालू ने दिया है |" मैं जैसे भालू को पकड़ा गया अगर आप भी भालू को वैसे ही पकड़ते हैं तो भालू डर के मारे आपको भी पैसे देंगे |
वह आदमी पैसों के लालच में भालू को दो पैरों पर पकड़ लिया जैसे वह मार्कर भालू को पकड़ा था | मार्कर जमीन पर बिखरे हुए अपने पैसों को जल्दी जल्दी उठानिया | उसके बाद ट्रोलर डिपार्टमेंट के कर्मियों को बुलायाकर ने उस आदमी को बचाया और भालू को वन विभाग के हवाले कर दिया |
चरित्र के पास उचित बुद्धि होने के कारण वह अपने आप को भालू से बचा पाया और अपने पैसों को भी बचा पाया
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