परिश्रम का फल


एक समय की बात है जब बनारस की राजा अपने घोड़ों पर सवार होकर घूमने के लिए निकल पड़े थे | कुछ दूर जाने के बाद उसने देखा कि कुछ लोग एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर गप्पे लगा रहे हैं और वह बहुत खुश थे। और कुछ दूर जाने के बाद उसने देखा कि बहुत सारे लोग एक जगह पर बैठकर शतरंज खेल रहे हैं | 

महाराज और कुछ दूर जाने के बाद देखा की एक बूढ़ी मां अपने बगीचे में एक पेड़ लगा रही है | यह देखकर महाराजा वहाँ पर रुक गए और उतर कर बूढ़ी माँ को पूछे गए सवाल कि आरे माँ, “आप को कैसा साल हुआ है, इसलिए सारे पेड़ पौधे लगाकर आप इस बगीचे में पानी क्यों दे रहे हैं? किस दिन इस पेड़ में फल लगेंगे और आप उसका सेवन करेंगे? "

वह बूढ़ी मां राजा का उत्तर देती है कि महाराज मैं इस फल को खाने वाली चीज लेकिन मेरे बच्चे को खा सकते हैं | मेरा परिश्रम थोड़े ही होगा "महाराज"!

परिश्रम का फल | Hindi Story


यह देखकर राजा समझे कि बहुत लोग बिना किसी कारण से अपना समय को अभी तक नष्ट कर रहे हैं | लेकिन यह बूढ़ी मां पूछ सोचकर औरतों के उपचार के लिए काम कर रही है | लेकिन यह बूढ़ी मां कुछ ना सोच कर और ओके भलाई के लिए काम कर रही है | यह देखकर महाराज बहुत खुश हुए और उन्होंने बूढ़ी मां के हाथ को पकड़ कर उन्हें एक स्वर्ण का मोहर प्रदान की | यह देखकर बूढ़ी मां खुशी से बोले, "देखो बेटा यह मेरा परिश्रम का फल नहीं है"? परिश्रम का फल कभी जाना नहीं जाता |

इस कहानी से हम यह सीखते हैं कि हमें हमेशा परिश्रम करते रहना चाहिए क्योंकि परिश्रम का फल कभी नहीं जाता है | 


|| धन्यवाद ||